Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

यूरोपीय धर्म सुधार आंदोलन का ऐतिहासिक महत्व

यूरोपीय धर्म सुधार आंदोलन का ऐतिहासिक महत्व

  

फ्रांस में प्रोटेस्टैंटवाद को जब अन्तत: कुचल दिया गया तो उसकी वजह से फ्रांस के ऊपर कोई गाज नहीं गिरी। वहां रूसो, वाल्तेयर, दिदरो जैसे लोग पैदा होते रहे और वहाँ राजनैतिक सुधार (प्रजातंत्र) की महान क्रांति हुई। परन्तु अगर उसे जर्मनी में कुचल दिया जाता तो पूरे संसार और जर्मनी के लिए भारी विपत्ति आ जाती। उसकी वजह से रोमन भासी कैथोलिक देशों के विकास की पध्दति लाद जी जाती जो मूलत: ईग्ंलैंड के अर्धकैथोलिक तथा मध्ययुगीन संस्थाओं द्वारा संचालित होता। ईग्ंलैंड के सभी विश्वविद्यालय, कॉलेज, पब्लिक स्कूल अर्धकैथोलिक मध्यकालीन मठ ही थे। अत: प्रोटेस्टैंटवाद के कुचले जाने के बाद जर्मनी के शिक्षा के सभी प्रोटेस्टैंट रूपों का अंत हो जाता और यूरोप का आत्मिक विकास सर्वथा एकरस और नीरस हो जाता। घर पर या प्राइवेट संस्थाओं में शिक्षा, कॉलेज के बाहर छात्रों के रहने तथा अपने पाठ्यक्रम का स्वयं चयन करने की सुविधा जर्मन धर्म सुधार आंदोलन की मूल विशेषता थी।
फ्रांस की राजनैतिक क्रांति और ईग्ंलैंड की औद्योगिक क्रांति के दौरान मध्यकालीन पूर्वाग्रहों को मूलत: समाप्त कर दिया गया किन्तु जर्मनी के धर्मसुधार आंदोलन के दौरान उनको वहीं तक खत्म किया गया जहाँ तक वे उसके बाहय रूपों तक संबंधित थे। जर्मनी ने केवल मध्यकालीन पूर्वाग्रहों के परम्परागत सांचों को ही तोड़ा है। प्रत्येक जर्मन वस्तु में जो एक रूपविहीनता पायी जाती है, आंशिक रूप से उसकी वजह यही है।

बिस्मार्क के समय से पहले तक जर्मनी छोटे छोटे राज्यों की बहुतायत से उत्पन होने वाली जबर्दस्त परेशानियों का शिकार रहा है, किन्तु जहां तक जर्मन राष्ट्र के विकास की क्षमता का प्रश्न है वह बहुत फायदे में रहा है। यूरोपियन युनियन बनने के बाद जर्मनी इसके केन्द्र में आ गया है।

       

        German Modernity

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