Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता

 


महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

गुलाम भारत में संप्रभुता एवं स्वावलंबन के सूत्रो की खोज

खण्ड घ
सनातन सभ्यता का नया शास्त्रा 
   
बुनियादी शिक्षा

 

गांधीजी कहते हैं कि शिक्षा का साधारण अर्थ अक्षर-ज्ञान ही होता है। लोगों को लिखना, पढ़ना और हिसाब करना सिखाना बुनियादी या प्राथमिक (प्रायमरी) शिक्षा कहलाती है। एक किसान ईमानदारी से खुद खेती करके रोटी कमाता है। उसे मामूली तौर पर दुनियावी ज्ञान है। अपने माँ-बाप के साथ कैसे व्यवहार करना, अपनी स्त्री के साथ कैसे व्यवहार करना, बच्ची से कैसे पेश आना है, जिस देहात में वह बसा हुआ है वहाँ उसकी चालढाल कैसी होनी चाहिये, इस सबका उसे काफी ज्ञान है। वह नीति के नियम समझता है और उनका पालन करता है। लेकिन वह अपने दस्तखत करना नहीं जानता। गांधीजी पूछते है कि इस आदमी को आप अक्षर-ज्ञान देकर क्या हासिल करना चाहते हैं? उसके सुख में आप कौन सी बढ़ोतरी करेंगे? क्या आप उसकी झोंपड़ी या उसकी हालत के बारे में,  उसके मन में, असंतोष पैदा करना चाहते हैं? ऐसा करना हो तो भी ऐसे अक्षर-ज्ञान देने की जरूरत नहीं है। चूंकि ऐसे असंतोष से तो मूलत: अंग्रेजी राज पुष्ट होगा और पारंपरिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न होगी।

एक अंग्रेज विद्वान हक्सले के विचारों को उधृत करते हुए गांधीजी कहते हैं कि ''उस आदमी ने सच्ची शिक्षा पाई है, जिसके शरीर को ऐसी आदत डाली गई है कि वह उसके बस में रहता है, जिसका शरीर चैन से और आसानी से सौंपा हुआ काम करता है। उस आदमी ने सच्ची शिक्षा पाई है, जिसकी बुध्दि शुध्द, शांत और न्यायदर्शी है। उसने सच्ची शिक्षा पाई है, जिसका मन कुदरती कानूनों से भरा है और जिसकी इंद्रियाँ उसके बस में हैं, जिसकी मन की भावनायें बिल्कुल शुध्द हैं, जिसे नीच कामों से नफरत है और जो दूसरों को अपने जैसा मानता है। ऐसा आदमी ही सच्चा, शिक्षित या तालीमशुदा माना जायेगा, क्योंकि वह कुदरत के कानून के मुताबिक चलता है। कुदरत उसका अच्छा उपयोग करेगी और वह कुदरत का अच्छा उपयोग करेगा।'' गांधीजी कहते है कि इस तरह की शिक्षा तो पारंपरिक रूप से हिन्दुस्तान के लोगों को सदियों से प्राप्त होती रही है। केवल अंग्रेजी राज में ही इसके विपरीत मूल्यों वाली अनैतिक शिक्षा दी जा रही है।

करोड़ों लोगों को ऐसी अनैतिक, अव्यावहारिक अंग्रेजी शिक्षा देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है। मैकॉले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी। अंग्रेजों ने इसी इरादे से अपनी योजना बनाई थी ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन उसके काम का नतीजा यही निकला है। यह कितने दुख की बात है कि हम स्वराज की बात भी पराई भाषा में करते हैं। गांधीजी कहते हैं कि आपको समझना चाहिये कि अंग्रेजी शिक्षा लेकर हमने अपने राष्ट्र को गुलाम बनाया है। अंग्रेजी शिक्षा से दंभ, राग, जुल्म, वगैरह बढे हैं। अंग्रेजी शिक्षा पाये हुए लोगों ने अपने मूल्य बदल जाने के कारण प्रजा को ठगने में और उसे परेशान करने में अपराधा बोधा महसूस करना छोड़ दिया है।

परंतु गांधीजी स्वीकार करते हैं कि हम लोग आधुनिक सभ्यता के रोग में ऐसे फंस चुके हैं कि अंग्रेजी शिक्षा को पूरी तरह अस्वीकार कर अपना काम चला सकें ऐसी स्थिति फिलहाल नहीं रही। अब अगर अंग्रेजी शिक्षा पाये हुए लोग इस देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो वे अपनी अंग्रेजी शिक्षा का भी देश हित में सदुपयोग कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, अंग्रेज लोग खुद अपनी सभ्यता से कैसे परेशान हो गये हैं यह समझने और समझाने के लिए अंग्रेजी का उपयोग किया जा सकता है। जो लोग अंग्रेजी पढ़े हुए हैं उनकी संतानों को पहले तो हिन्दुस्तानी रीति-नीति सिखानी चाहिये, उनको मातृभाषा सिखानी चाहिये और हिन्दुस्तान की दूसरी भाषा सिखानी चाहिये। बालक जब पुख्ता (पक्की) उम्र के हो जाएं तब भले ही वे अंग्रेजी शिक्षा पाएं और वह भी इस देश पर विदेशी प्रभाव मिटाने के इरादे से, न कि उसके जरिये पैसा कमाने के इरादे से। गांधीजी मानते हैं कि जो अंग्रेजी पुस्तकें काम की हैं उनका हमें अपनी भाषा में अनुवाद करना होगा। अनावश्यक शास्त्र सीखने का दंभ और वहम हमें छोड़ना होगा। गांधीजी की नजर में सबसे पहले तो धर्म की शिक्षा या नीति की शिक्षा दी जानी चाहिये। हर एक पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानी को अपनी भाषा का, हिन्दू को संस्कृत का, मुसलमान को अरबी का, पारसी को फारसी का और सबको हिन्दी का ज्ञान होना चाहिये। कुछ हिन्दुओं को अरबी और कुछ मुसलमानों और पारसियों को संस्कृत सीखनी चाहिये। उत्तारी और पश्चिमी हिन्दुस्तान के लोगों को तमिल सीखनी चाहिये। सारे हिन्दुस्तान के लिये जो भाषा चाहिये वह तो हिन्दी ही होनी चाहिये। उसे उर्दू या नागरी लिपि में लिखने की छूट रहनी चाहिये। हिन्दू-मुसलमानों के संबंधा ठीक रहें, इसलिए बहुत से हिन्दुस्तानियों को इन दोनों लिपियों को जान लेना जरूरी है। ऐसा होने से हम आपस के व्यवहार में अंग्रेजी को निकाल सकेंगे। यह सबसे अधिाक उनके लिए जरूरी है जो बौध्दिक एवं सांस्कृतिक रूप से अंग्रेजों की सभ्यता के गुलाम बन गये हैं। हमारी गुलामी की वजह से देश की प्रजा गुलाम बनी है। अगर हम गुलामी से छूट जाएं, तो प्रजा तो छूट ही जायेगी। गांधीजी बड़े आत्म-विश्वास से कहते हैं कि हिन्दुस्तान कभी नास्तिक नहीं बनेगा। हिन्दुस्तान की भूमि में नास्तिक कभी भी फल-फूल नहीं पायेंगे। हिन्दुस्तान को असली रास्ते पर लाने के लिए आधुनिकता  में रसे बसे हिन्दुस्तानियों को ही पारंपरिक हिन्दुस्तान के लोक कल्याणकारी रास्ते पर आना होगा। बाकी करोड़ों लोग तो सही रास्ते पर हैं ही।  पारंपरिक तरीकों में सुधार, बिगाड़, उन्नति, अवनति काल-क्रम के अनुसार होते ही रहेंगे। पश्चिम की सभ्यता को निकाल बाहर करने की ही हमें कोशिश करनी चाहिये। अन्य प्रकार के असंतुलन काल-क्रम से अपने-आप ठीक हो जायेगा।

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