Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय राजनीति का समकालीन परिदृश्य

भारतीय राजनीति का समकालीन परिदृश्य

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संघ का राजनीतिक पाठ भारतीय समाज के शुध्दिकरण और भारत के सांगठनिक  दृढ़ता के विचार पर टिका है, जो कांग्रेस की संसदीय राजनीति के सिध्दांत से अलग है। इसलिए संघ का वोट बैंक भगवा कांग्रेसीकरण का वोट बैंक नहीं हो सकता। सवाल यह नहीं है कि भाजपा हार गई है। बड़ा सवाल यह है कि एक तरफ कांग्रेस है तो दूसरी तरफ संघ है। भाजपा तय नहीं कर पा रही है कि उसकी दिशा और दृष्टि क्या है। भाजपा को संघ से अलग देखने की चाह एक लिबरल फंटेसी है। हमारी राजनीति को एक गैर-कांग्रेसी, गैर-बामपंथी लिबरल पार्टी की जरूरत है। कुछ लोगों की आकांक्षा है कि भाजपा अगर संघ से पल्ला छुड़ा ले तो वह कांग्रेस का एक राष्ट्रवादी, दक्षिणपंथी और बाजारवादी विकल्प बन जाएगा। भाजपा अपने जनाधार के साथ एक तैयार माल है जिसे संघ से छीन कर लिबरल लोग अपने हिसाब से संस्कारित करना चाहते हैं ताकि उनके द्वारा अपेक्षित गैर-कांग्रेसवादी भविष्य की रचना का औजार तैयार हो सके। लेकिन यह व्यावहारिक फंटेसी नहीं है। संघ और भाजपा के विचारधारात्मक और सांगठनिक संबंधों का इतिहास बताता है कि ऐसा होना नामुमकिन है। संघ ऐसा होने नहीं देगा। भारत में एक राष्ट्रवादी, दक्षिणपंथी और बाजारवादी दल की आवश्यकता अवश्य है लेकिन यह एक नया दल होगा जो अभी अपने जन्म की गर्भावस्था में है। भाजपा अपने मौजूदा स्वरूप में विपक्ष की प्रभावी राजनीति कर सकती है। कांग्रेस की विफलताएं उसे फिर से मौका देंगी, बशर्ते भाजपा अपनी विचारधारात्मक और सांगठनिक विडंबनाओं को दूर कर ले। अन्यथा एक राष्ट्रवादी, दक्षिणपंथी और बाजारवादी दल भाजपा के विकल्प के रूप में जल्द हीं अस्तित्व में आएगा।

यू पी ए की सरकार यूं तो ठीक चल रही है लेकिन इसकी बागड़ोर ऐसे लोगों के हाथ में है जिन्होंने गांव और कस्बा को देखा नहीं है। इनका भारत के बारे में ज्ञान किताबी है। ये केवल आर्थिक सर्वेक्षणों एवं सांख्यिकी के तथ्य एवं टेबल के आधार पर भारत के बारे में एक औसत अवधारणा बनाते हैं और सरकार की योजनाओं एवं प्राथमिकताओं का निर्घारण करते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में गांव, कस्बा तथा कमजोर वर्गों एवं वंचितों के लिए व्यावहारिक एवं वांक्षनीए योजनाओं एवं प्राथमिकताओं का अभाव है। शहरी एवं महानगरीय पृष्ठभूमि के युवक एवं युवतियों में गांव एवं कस्बा के युवक एवं युवतियों से सामन्यत: ज्यादा आत्मविश्वास एवं स्मार्टनेस होता है। फलस्वरूव रोजगार एवं व्यवसाय के क्षेत्र में शहरी एवं महानगरीय पृष्ठभूमि के युवक एवं युवतियां बाजी मार लेती हैं। लेकिन गांव एवं कस्बों के प्रतिभाशाली एवं जीनिएस युवक, युवतियों के लिए समकालीन भारत में अवसरों की कमी नहीं है। औसत दर्जे के युवक, युवतियों के लिए मल्टी स्कीलिंग या बहुआयामी हुनुर की अवश्यकता है। इसके लिए पारंपरिक तकनीकों एवं हुनरों की अपग्रेडिंग एवं आधुनिकीकरण आवश्यक है। इसके लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। डिग्री आधारित शिक्षा की जगह बुनियादी शिक्षा या वोकेशनल शिक्षा की आवश्यकता है।

युवकों की जो पीढ़ी मतदाता के रूप में उभर रही है उसे कांग्रेस पार्टी की पुरानी गलतियों के बारे में मालूम नहीं है। नेहरूवादी समाजवाद, इंदिरा गांधी की इमरजेंसी, बोफोर्स, शाहबानो का मामला, लाल फीताशाही एक परिवार की तानाशाही बीते जमाने का इतिहास हो सोनिया के त्याग और राहुल की छवि उनको चमत्कृत करती है।

 

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