Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

दर्द, तपस और साधना

दर्द, तपस और साधना

 

80 वर्षीय लता मंगेश्कर, 76 वर्षीय आशा भोंसले, 68 वर्षीय जगजीत सिंह एक प्रकार के साधक हैं। प्रतिभा स्वयं जीवन ऊर्जा का स्रोत होती है। उसे बांधा नहीं जा सकता। किसी भी क्षेत्र में मात्र लंबी पारी जारी रखना भीतर की ताकत का परिचय देती है। इस ताकत का स्रोत केवल प्रतिभा नहीं होती। दर्द की भूमिका के बिना यह ताकत नहीं आती। दर्द व्यक्तिगत हो या सामूहिक उसकी अनुभूति व्यक्ति को मांजती है। तपस में आदमी स्वेच्छा से दर्द सहता है। अपनी सुविधाओं का त्याग करता है। व्यक्तिगत दर्द एक दुर्घटना की तरह अचानक आती है और व्यक्ति पागल होने से बचने के लिए सृजन का रास्ता चुनता है या मुक्ति का मार्ग खोजता है। उस रास्ते को साधने में जिन्दगी को नया अर्थ मिलता है। घनीभूत पीड़ा को जिन्दगी के उत्सव में रूपांतरित करने में भारतीय संस्कृति को महारत हासिल है।

 

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