Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

हिन्द स्वराज की प्रासंगिकता

 


महात्मा गांधी का हिन्द स्वराज

गुलाम भारत में संप्रभुता एवं स्वावलंबन के सूत्रो की खोज

खण्ड-क
हिन्द स्वराज का सभ्यतामूलक संदर्भ      
स्वराज का अर्थ एवं प्रकृति

हिन्द स्वराज के चौथे अधयाय का शीर्षक है -'स्वराज (स्वराज) क्या है?' इस अधयाय से हिन्द-स्वराज का असली एजेंडा, असली ब्लू-प्रिंट, असली मेनिफेस्टो, असली घोषणा-पत्र शुरू होता है। पहले तीन अधयाय संदर्भ प्रस्तुत करते हैं, भूमिका बनाते हैं। शेष सोलह अधयाय विषय की प्रस्तुति करते हैं। अंतिम अधयाय (20वें) में पूरी पुस्तिका का सार-संक्षेप है।

चौथे अधयाय में गांधीजी स्वराज का अर्थ एवं प्रकृति समझाते हैं। उनका कहना है कि यह समझना बहुत आवश्यक है कि इस देश से अंग्रेजों को क्यों निकाला जाना चाहिए? गांधीजी कहते हैं कि कुछ लोग अंग्रेजों को तो इस देश से भगाना चाहते हैं परंतु वे अंग्रेजी राज और अंग्रेजी राज के विधान में कोई बुराई नहीं देखते। उनको अंग्रेजों के व्यवहार से परेशानी है चूंकि अंग्रेज हर साल इस देश को कंगाल करके धान ले जाते हैं, अपनी ही चमड़ी के लोगों को बड़े ओहदे देते हैं, हमें सिर्फ गुलामी में रखते हैं, हमारे साथ बेअदबी का बरताव करते हैं और हमारी जरा भी परवाह नहीं करते। परंतु गांधीजी को केवल उपरोक्त आधार पर अंग्रेजों का विरोधा और अपना स्वराज प्राप्त करना तर्कसंगत एवं वैधा नहीं लगता। वे व्यंग्यात्मक रूप से कहते हैं कि ''हमें अंग्रेजी राज (राज्य) तो चाहिए, पर अंग्रेज (शासक) नहीं चाहिए। आप बाघ का स्वभाव तो चाहते हैं, लेकिन बाघ नहीं चाहते। मतलब यह हुआ कि आप हिन्दुस्तान को इंग्लैंड जैसा बनाना चाहते हैं। और हिन्दुस्तान जब इंग्लैंड जैसा बन जायगा तब वह हिन्दुस्तान नहीं कहा जायेगा बल्कि सच्चा इंग्लैंड कहा जायेगा।'' वे जोर देकर कहते हैं कि यह उनकी कल्पना का स्वराज तो नहीं है।

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