Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

माइकल जैक्सन और अमेरिकी समाज

माइकल जैक्सन और अमेरिकी समाज

 

एक महाबली देश के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्म प्रथम विश्व युध्द के दौरान फिल्म निर्माण करने के साथ शुरु हुआ। जब यूरोप के अधिकांश देश युध्द लड़ने में व्यस्त थे तो अमेरिका फिल्में बना रहा था। जब प्रथम विश्व युध्द समाप्त हुआ तो अमेरिका ने यूरोप के खाली सिनेमा घरो में अपनी फिल्मों का प्रदर्शन शुरू किया। युध्द के दौरान यूरोप में फिल्में नहीं बन रही थी। फलस्वरूप अमेरिकी फिल्मों को प्रतियोगिता का सामना नहीं करना पड़ा। अमेरिका में फिल्मों का निर्माण यहूदी समुदाय के लोगों के द्वारा किया गया। अमेरिकी संस्कृति के प्रचार प्रसार में सिनेमा एवं संस्कृति उद्योग की भूमिका आज तक बनी रही।
द्वितीय विश्वयुध्द के आस-पास अमेरिका हथियारों के सबसे बड़े सौदागर के रूप में उभरा। द्वितीय विश्व युध्द के समाप्त होने के बाद अमेरिका ने जापान के नगरों हिरोशिमा एवं नागासाकी पर परमाणु बम फोड़ कर अपनी सैन्य शक्ति का डंका पीट दिया और ब्रेटन-वुड्स अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था संसार पर थोपा। इस व्यवस्था के तहत डॉलर को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में मान्यता मिली। दुनिया के पचासी फिसदी से अधिक कारोबार डॉलर के माध्यम से होने लगे। अमेरिका को इसका आर्थिक लाभ मिलने लगा। हथियारों की बिक्री एवं डॉलर इस्तमाल करने का किराया तथा हॉलीवुड की फिल्मों ने अमेरिका को सबसे धनी एवं सबसे शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित किया। मर्लिन मुनरो, एल्विस प्रेसली, माइकल जैक्सन, मैडोना तथा ब्रिटनी स्पियर्स ने अमेरिकी साम्राज्य का सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व किया। इनमें मर्लिन मुनरो और माइकल जैक्सन की ख्याति सारी सीमाएं पार कर गई। 

माइकल जैक्सन

माइकल जैक्सन का जन्म 29 अगस्त 1958 में एक अमेरिकी निग्रो परिवार में हुआ। 1971 में माइकल जैक्सन जैक्सन-5 नामक म्युजिक एलबम के लीड सिंगर बने। 1983 में उन्होंने चेहरे पर सर्जरी करवाया और हेयर स्टाइल बदला। 1985 में सर्जरी से नाक तथा भवें पतली करवाई और त्वचा गोरी बनवाई। 1992 में ठुढ़ी पर गड्ढ़ा नजर आया तथा रंग कुछ और गोरा हुआ। 2001-2002 में यौन शोषण विवाद में फसे। 2002 में विग पहनना शुरू किया। कास्मेटिक सर्जरी के बिगड़ जाने के कारण नाक का आकार बिगड़ गया। वह एक तरफ से कुछ और दुसरी तरफ से कुछ और नज़र आता था। उनके नाखुनों का रंगा भी बदल गया था। 1983 से उनकी लोकप्रियता आसमान छुने लगी थी और वे अपने जीवन में ही किवंदती बन गये थे। परंतु इसी के साथ उनकी समस्यांए भी शुरू हुई । 1983 में वे पचीस वर्ष के थे। तब से लेकर 26 जुन 2009 को अपनी मृत्यु तक वे कास्मेटिक सर्जरी के लंबे दौर से गुजरे। चेहरा, नाक और त्वचा तेजी से बदला, कई स्कैंडल आया, कैरियर भी लड़खडाया। उन्हें चमड़ी की ऐसी बीमारी थी कि इलाज की प्रक्रिया में वह गोरे हो गए, परन्तु आत्मा से श्याम होने का दर्द कभी मिटा नहीं। उन्होंने अपने दर्द को माधुर्य में ढ़ाल दिया और दुनिया जीतने के बाद वह खुद से ही हार गया। बेहिसाब प्रसिध्दि रोड़ा बन जाती है। ग्यारह वर्ष की कमसिन उम्र में दुनिया आपके कदमों में बिछ जाए तो अपने को संभालना कठिन हो जाता है।
माइकल जैक्सन और अमेरिकी समाज के रिश्ते को समझना आवश्यक है। सफलता के शिखर पर भी एम. जे. को अमेरिकी समाज में चिंता सताती थी, नैराश्य घेरे रहता था। अनाम अपरिभाषित दर्द की सेज पर पड़े - पड़े ही उन्होंने प्यार के नगमे गुनगुनाए। अमेरिकी समाज में अमीर और पसिध्द लोगों को अजीबोगरीब रोग होते हैं। मजदूर और मेहनतकश को दर्द नहीं होता, अनिद्रा नहीं होती, अनावश्यक डर नहीं लगता। सफलता और प्रसिध्दि मजबूत आदमी को भी विचलित कर देता है। सफल व्यक्ति को असफलता से बड़ा भय लगता है। चकाचौंध भरे जीवन में दृष्टि दोष विकसित हो जाते हैं। प्रसिध्द व्यक्ति का जीवन प्रत्यंचा पर थरथराते हुए तीर की तरह होता है। लगातार मनोरंजन करने का तनाव कलाकार झेल नहीं पाता और सफलता के सर्कस में शरीर व मन के साथ खिलवाड़ होता है। पूंजी निवेशकों का दबाव जान लेवा होता है। जीवन की माया या विष्णु का स्वपन  एम. जे. के लिए यथार्थ था और दुनियादारी कल्पना थी। एम. जे. अनाम व्यथा और आध्यात्मिंक दर्द से पीडित व्यक्ति थे। वह मनोरंजन जगत के हंसते - गाते, रोते - विलखते जोकर थे। निरंतर सनसनी की खोज को पैदा करने वाली व्यवस्था में एम. जे. की जिन्दगी की तरह हादसे होते रहते हैं।
अपनी सफलता के बोझ तले अमेरिका ने एक अत्यंत विचलित और डरे हुए देश की तरह अपने समाज में यातना शिविर गढ़ा है और आतंकवाद से लड़ने की प्रक्रिया में सूक्ष्म रूप से स्वंय आतंकवादी समाज हो गया है। पूंजीवादी होड़ से उपजे नफरत के खेल का यही अंजाम होता है। गुनाह के खिलाफ चलाई गई मुहिम आपकी आत्मा में भी फौलाद भर देती है। 9 सितंबर 2001 और इसके बाद की  घटनाये अमेरिका के तालिबानीकरण की प्रक्रिया का दर्शन निहायत ही संजीदगी से कराती है। एफ. बी. आई. और संगठित अपराध के अमानवीय तौर - तरीकों में कोई अंतर नहीं है। अन्याय से हमेशा अन्याय ही पैदा होता है।

अमेरिकी वर्चस्व के दिन अब लद रहे है। जून 2009 में डॉलर का महत्व घटा है तथा माइकल जैक्सन की मृत्यु हो गयी है। चीन, रूस, भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका, यूरोपियन युनियन तथा ईरान अमेरिका के खिलाफ संगठित हो रहे हैं। जून 2009 के तीसरे सप्ताह में रूस के शहर येकातेरिनबर्ग में कम से कम आर्थिक मामलों में अमेरिकी दबदबे के खत्म होने की शुरूआत हो चुकी है। येकातेरिनबर्ग में डॉलर की हैसियत को जैसी चुनौती मिली, उतना पहले शायद कभी नहीं हुआ था। एक समय दुनिया का 85 फीसदी कारोबार डॉलर में होता था। अब 65 फीसदी कारोबार ही डॉलर में होता है। 1990 के दशक में यूरो के एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उभरने के साथ डॉलर की हैसियत कम होने लगी। सितंबर 2008 में अमेरिकी मंदी से इसमें गति आई। जी.20 की बैठक (जून 2008) में रूस और चीन ने एक नई मुद्रा बनाने की वकालत की। रूस - चीन अब तेल का आपसी कारोबार रूबल और युआन में करेंगे। यह 100 अरब डॉलर का कारोबार है।

 

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