Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

अमेरिका नियंत्रित विश्व ग्राम का भविष्य

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अमेरिका नियंत्रित विश्व ग्राम का भविष्य

 

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  3) विवेकानंद योगी हैं,गांधी संत । संत सर्वसमावेशी होता है। योगी आम आदमी की चीज नहीं। परन्तु विवेकानंद को मध्यवर्गीय हिन्दू समाज का मसीहा बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। इस संदर्भ में पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान-तकनीक और भारतीय वेदांत के संश्लेषण की बात की जा सकती है। विज्ञान साधना है,वेदांत साध्य।
गांधी का कहना था कि आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक शैतानी साधन है। गलत साधन के इस्तेमाल से आप सही साध्य की पूर्ति नहीं कर सकते।
लेकिन विवेकानंदवादियों का कहना है कि आधुनिक ज्ञान-विज्ञान-तकनीक सार्वभौमिक सनातनी तकनीक के ही रूपातंरण हैं। दयानंदवादियों ने भी यही कहा कि आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक का उद्गम वेद है। विवेकानंद ने भारतीय मध्यवर्ग के लिए पैरेटो की भाषा में तर्क प्रस्तुत कर रहे थे। भारतीय मध्यवर्ग का काफी हद तक पश्चिमीकरण हो चुका है। यह सनातन जीवन मूल्य एवं जीवन पद्वति को कालबाह्य मान चुका है। लेकिन यह सांस्कृतिक पहचान की जद्दोजहद से गुजर रहा है। विवेकानंद ने उन्हें आधुनिक वेदांत के रूप में एक विचारधारा , एक तर्कप्रणाली प्रस्तुत किया। वे हिन्दू दक्षिणापंथ के काल्विन जैसे भाष्यकार बनने की कोशिश नहीं कर पाए। वे हिन्दू दक्षिणापंथ के मैक्स वेबर हैं। श्री अरविंदो, दयानंद, रामस्वरूप की विचार धारा भी कुल मिलाकर विवेकानंद जैसी है। जबकि महात्मा गांधी हिन्दू वामपंथ या  पांरपरिक भारतीयों के दुर्खीम हैं।
अभी स्वामी विवेकानंद का हिन्दू दक्षिणपंथ विजेता लग रहा है। अभी लंबे समय तक पूंजीवाद का कोई विकल्प नहीं है। एक योगी के रूप में उन्होंने पूंजीवाद के वर्चस्व को देख लिया था। राममोहन राय के प्रभाव में वे पूर्व एवं पश्चिम के हिमायती थे ही। खुद बंगाल में ब्रिटिश राज की बरकत का गीत गाने वाले बंगाली भ्रदलोक की पृष्ठभूमि से आए थे। राममनोहर राय ,तिलक महाराज और श्री अरविंदो को बहुत बड़ा विद्वान माना जाता है। स्वामी विवेकानंद योगी थे। टैगोर कलाकार थे। कवि, साहित्यकार,संगीतकार एवं पेंटर थे।

4) इसमें कोई शक नहीं कि आधुनिक तकनीक शैतानी प्रवृत्ति का है। एक समस्या सुलझाकर दस नई समस्या पैदा करना और फिर इन दस समस्याओं को सुलझाने के लिए शोध करना एक चक्रीय, झंझावात है। अभी लंबे समय तक इससे दुनिया को निजात नहीं मिलने वाली है। यह ईशवरीय लीला का ही नया रूप है। जो तकनीक के इस खेल में सहभागी हैं वे अचेतन रूप से शैतानी प्रवृत्ति के लोग हैं। ये लोग दिक एवं काल की हद को पार करके कृत्रिम रूप से सुख सुविधा पाना चाहते हैं और हर कीमत पर नश्वर शरीर की जिन्दगी लंबी करना चाहते हैं। इन्हें मानव देह की सुविधाओं, विलासिता एवं लंबे भोग काल की चाहत का हबस है। इसी को ध्यान में रखकर गांधी ने कहा था कि वे अच्छी सुविधाजनक भोगवादी जिन्दगी के प्रति आसक्त हैं जबकि हमलोग गरिमामय मृत्यु और मृत्यु के बाद के पवित्र जीवन की ज्यादा कामना करते हैं। वे लोग बाबा आदम के द्वारा किए गए पाप और ईश्वर द्वारा आदम को दिए गए दंड की छाया में अपवित्र एवं आतंकित जीवन जीने को अभिशप्त हैं जबकि हमलोग कर्म के सिद्वांत को मानते हुए दहशत के साये में भी जिन्दगी का उत्सव और मौत का जश्न मनाते हैं। पश्चिम के लोग मानते हैं कि जो सभ्यता आधुनिक तकनीक के इस शैतानी खेल में सहभागी नहीं होगा वह वंचित तथा सीमित हो जाएगा, पिछड़ जाएगा। आधुनिक सभ्यता और आधुनिक विज्ञान-तकनीक का कोई विकल्प नहीं है। समकालीन विश्व , आधुनिक युग में यह अंतिम चीज है। अब विचारधारा और इतिहास का अंत हो गया है। अब सोशल साइन्सेज, साहित्य, दर्शन में नया खोज नहीं है। सब कुछ खोजा जा चुका है। अब केवल विज्ञान एवं तकनीक के क्षेत्र में ही नयापन संभव है।

दरअसल यह सेमेटिक घोषणा पत्र है। ईसाई और मुसलमान भी इसी तरह की भाषा बोलते रहे हैं। ईसाईयों एवं मुसलमानों का पारंपरिक झगड़ा ही इसी बात पर आधारित है कि ईसाई तत्व दर्शन या थियोलॉजी अब्राहम की परंपरा का सही प्रतिनिधित्व करता है अथवा इस्लामिक थियोलॉजी । मुहम्मद को अंतिम पैगम्बर साबित करके इस्लाम भी यही दावा करता है कि एक सभ्य, न्यायोचित एवं आनंदमय समाज या सभ्यता के लिए जरूरी फ्रेमवर्क खोजा जा चुका है अब नया खोजने की आवश्यकता नहीं है। अब ईमानदारी से इस पर चलने की जरूरत है। इसको अपनाने की जरूरत है। इसको प्रचारित करने की जरूरत है। इसी क्रम में मुसलमानों ने दुनिया के भिन्न-भिन्न कोने से उपलब्ध आवश्यक एवं मंगलकारी ज्ञान-विज्ञान का चुन-बिन कर जमा किया। इसको अरबी-फारसी भाषा में अनुवादित किया। और इसे पश्चिमी देशों में पहुंचाया। 

5) इस्लामी शासन में लगातार युद्व चलता रहा। अत: विधवाओं को ध्यान में रखकर 4 विवाह की अवधारणा सामने आयी। लेकिन बहु विवाह तो भारत में भी एक हद तक प्रचलित रहा है। केवल मुगल बादशाहों ने हरम नहीं बसाया है। अन्य देश के राजाओं और पूंजीपतियों ने भी हरम जैसी व्यवस्था बनाये रखी है।

धीरे-धीरे मुस्लिम देशों में भी पश्चिमी करण हो रहा है। इसको आधुनिकीकरण भी कहते हैं। उनके यहां भी धर्म सुधार या समाज सुधार के प्रयास होते रहे हैं। सूफी आंदोलन एक प्रकार का सुधार आंदोलन ही रहा है। पेटृो डॉलर और अमरीकी डॉलर का घालमेल कम से कम 1973 से तो चल ही रहा है। इस्लामिक क्रांति (1979) से पहले 1919 में खलीफा के पद समाप्त होने के बाद से मुस्लिम देशों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चलती रही है। सर सैय्यद अहमद खान से शाह रजा शाह पहलवी तक आधुनिकता की वकालत इस्लाम में होती रही है। लेकिन 1979 से आधुनिकता और इस्लाम का संघर्ष लगातार बढ़ता रहा है।   

सोवियत संघ में 1972 से 79 तक अमरीकी प्रभाव बढ़ा। 1985 से पेरोस्त्रोइका शुरू हुआ। 1991 में सोवियत संघ बिखर गया। मुसलमान मार्क्सवादियों ने इस बीच इस्लाम का झंडा थाम लिया।

6) गांधी ने 1920-21 में खिलाफत आंदोलन क्यों चलाया ? हिन्द स्वराज में पैगम्बर मोहम्मद की शैतानी सभ्यता की चर्चा क्यों है ? गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर क्यों देते हैं ?

इस पर दो दृष्टिकोण है। एक वर्ग का कहना था कि गांधी की उपरोक्त रणनीति व्यवहारिक अवसरवादी गठबंधन का उदाहरण था। गांधी एक अवसरवादी जननेता थे।

   वे अंग्रजी राज के खिलाफ एक सफल व्यावहारिक गठबंधन तैयार कर रहे थे।

उनके पास दिव्य चेतन शक्ति थी। वे समझ चुके थे कि अब भारत में शासन करना अंग्रेजों के लिए आर्थिक रूप से महंगा पड़ रहा है। अब उन्हें हमारे कच्चे माल की उतनी आवश्यकता नहीं है। अब सिन्थेटिक उत्पादन बनाने लगे हैं। अंग्रेजों को भारत से जो लेना था वे ले चुके हैं। अब वे जायेंगे। अत: अगर शांति पूर्वक असहयोग आंदोलन चलाया जाए, सत्याग्रह आंदोलन चलाया जाए तो वे जल्दी चले जाएंगे। इसके लिए हिन्दू-मुस्लिम एकता आवश्यक है। दूसरी और अंग्रेजों ने इस राजनीतिक गठबंधन को तोड़ने की चाल चली। जिन्ना, अंबेदकर, सावरकर तीनों अंग्रेजों की चाल में आ गए। अंग्रेज गए लेकिन देश को बांट कर गए। भारत पाकिस्तान के बीच सेना खड़ी कर गए। सेना को अत्याधुनिक हथियार चाहिए। हथियार पश्चिम से ही मिलेगा। युध्द की स्थयी आशंका के दबाव में काले अंग्रेजों का राज भारत-पाकिस्तान में चलता रहेगा।

एक दूसरा दृष्टिकोण भी है। वह मानता है कि गांधी ने इस्लाम के पारम्परिक स्वरूप को पहचाना था। धर्म के ऊपरी आवरण को दरकिनार करके उन्होंने हिन्दु-मुस्लिम एकता के स्वभाविक आधार को देख लिया था। 12वीं शताब्दी से साथ रहते रहते हिन्दु-मुसलमान सह-अस्तित्व सीख चुके थे। दबंग लोग दोनों समुदायों में थे। लेकिन फिर भी आम हिन्द-मुसलमान पारम्परिक जीवन दर्शन मानते थे, उनके बीच एक साझी विराजत भी थी। उनके बीच आपसी झगड़ा था लेकिन  सभ्यतामूलक एकता भी थी। दूसरी ओर आधुनिक पश्चिम से सभ्यतामूलक संघर्ष है। गांधी यह भी जानते थे कि जो इस शैतानी सभ्यता में समझ-बूझकर भागीदारी नहीं करेगा वह आधुनिक दृष्टि से भले ही पिछड़ जाएगा  लेकिन पारम्परिक दृष्टि से स्थित -प्रज्ञ कहलायेगा। उसे आर्थिक रूप से कुछ कष्ट भले होगा लेकिन वह मोक्ष का अधिकारी होगा।

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