Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

भारतीय राजनीति का समकालीन परिदृश्य

भारतीय राजनीति का समकालीन परिदृश्य

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सोनिया-राहुल-प्रियंका यू पी ए सरकार को एक अमेरिकी फाउन्डेशन की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं अत: उन्हें अलग से फाउन्डेशन नहीं चाहिए। कांग्रेस संगठन में सर्वव्यापी हाईकमान संस्कृति और मजबूत हुई है। शरद पवार जैसे स्वाभिमानी क्षत्रप के लिए दिल्ली दरबार के चक्करों में वक्त बर्बाद करना तथा अपनी स्वतंत्र पहचान को कायम रखने के मार्ग में स्वाभाविक अंतर्विरोध है। अत: वे अपने गृहराज्य में अपनी निजी जागीर चलाना बेहतर समझते हैं। मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में मुट्ठी भर सांसदों वाली पार्टी अपने लिए पर्याप्त मंत्रालय मांग सकती है। महज नौ सांसदों के बल पर तीन मंत्रियों के साथ एक स्वतंत्र पार्टी के तौर पर एन.सी.पी कांग्रेस नेतृत्व से महाराष्ट्र में बड़े हिस्से के लिए मोल-तोल कर सकती है। कांग्रेस का हिस्सा बनने पर उसे उसी से संतोष करना होगा जो पार्टी नेतृत्व द्वारा दिया जाएगा। पश्चिमी महाराष्ट्र एन. सी. पी. का गढ़ है। लेकिन यह भी सच है कि शरद पवार की मृत्यु के बाद उनकी पार्टी का आज न कल कांग्रेस में उसी तरह विलय हो जाएगा जिस तरह जी.के. मूपनार और करूनाकरण की पार्टी का हो चुका है।

द्रमुक एक पारिवारिक फर्म बनने के बावजूद तमिल हितों की बात करती है। तृणमूल को हालिया सफलता खुद को बंगाली राष्ट्रवाद या उपराष्ट्रवाद से जोड़ने की वजह से मिली है। तृणमूल भी एन.सी.पी. की राह पर चलते हुए कुछ समय बाद कांग्रेस में विलय हो सकती है। चूंकि ममता की पार्टी व्यक्ति केन्द्रित है और ममता का 'परिवार' नहीं है। वह किसी प्रकार भी अपनी पार्टी में अपने अलावे स्वतंत्र कद काठी के नेतृत्व के विकास के पक्ष में नहीं रही है। इसी कारण अजीत पांजा और सुदिप बंधोपाध्याय जैसे नेताओं को पार्टी छोड़ना पड़ा। इस बार भी यदि ममता चाहती तो उसे द्रमूक की तरह तीन कैबिनट मंत्री मिल सकता था। उड़ीसा में नवीन पटनायक भी बीजू जनता दल के जरिये एक तरह से उड़ीसा गौरव का भाव जगाने में सफल रहे हैं। नवीन पटनायक की तरह हीं बिहार में नीतीश कुमार ने अपनी जगह बनायी है जिसे दरकने में अभी कुछ समय लगेगा। झारखंड में माओवादी काफी मजबूत स्थिति में हैं। अत: मुझे नहीं लगता कि बिहार, उड़ीसा और झारखंड में कांग्रेस को आसानी से अपनी जमीन मिलेगी।

हैरानी यह है कि कांग्रेस की 2009 की जीत (546 में 206 सीट) को इस तरह प्रचारित किया गया है मानो यह कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी चुनावी जीत है जबकि सच्चाई यह है कि आज का नेहरू परिवार काफी दुर्बल और जीर्ण -शीर्ण है और वह वैकल्पिक राजनीतिक आकर्षण के लघु और क्षेत्रीय स्रोतों से बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। क्षेत्रीयकरण एक स्वस्थ जनतांत्रिक प्रक्रिया है जिसका इन नेताओं के घटिया और भ्रष्ट व्यवहार से कोई लेना-देना नहीं है। यह इस विशाल और विविधतापूर्ण देश की जरूरत है। कोई भी राष्ट्रीय दल इस देश को संपूर्ण रूप से प्रतिनिधित्व करने में सक्षम नहीं है। क्षेत्रीय दलों का आगे आना भारतीय राजनीति में सत्ता के विकेंद्रीकरण और संघवाद के सिध्दांत का समर्थन है। केन्द्रीय नेता अपनी लोकप्रिय सत्ता का इस्तेमाल आम आदमी के विरूध्द करते हैं। वे न केवल अपने राजसी ठाट- बाट पर असीमित पैसा खर्च करते हैं बल्कि देश के संसाघन पर निहित-स्वार्थों के नियंत्रण को भी सुनिश्चित करते हैं।

इस चुनाव में यू.पी. में कांग्रेस की 80 में 35 सीटों पर और बिहार में 40 में 30 सीटों पर जमानत जप्त हो गई है। बिहार में कांग्रेस के 2004 में 3 सांसद थे आज 2 हैं। और कहा जा रहा है कि कांग्रेस का रिवाइवल हो गया है और  राहुल लहर चल रही है। सच तो यह है कि मनमोहन सिंह कांग्रेस के (भाग्यशाली) अटल बिहारी बाजपेयी साबित हुए हैं लेकिन उनको इसका श्रेय नहीं दिया जा रहा है। जिस प्रकार भाजपा में ''संघ'' का मिथक है उसी तरह कांग्रेस में ''गांधी परिवार'' का मिथक है। मनमोहन सिंह अपने गुरू नरसिंह राव से भी ज्यादा भाग्यशाली साबित हुए हैं। उनका उचित मूल्यांकण किया जाना बाकी है। 2014 का चुनाव एक खाली मैदान होगा। इसे कांग्रेस , भाजपा या नया गठबंधन कोई भी जीत सकता है। राजनीति के पंडितों को यह बात अक्सर चौंकाती है कि 80 प्रतिशत हिन्दुओं की राजनीति करने वाली भाजपा को 18-20 प्रतिशत वोट ही क्यों मिल पाता है? संघ की विचार धारा में शिवाजी और राणा प्रताप को ही प्रमुखता क्यों दी जाती है?चंद्रगुप्त मौर्य , सम्राट अशोक , समुद्रगुप्त ,चंद्रगुप्त विक्रमादित्य , हर्षवर्ध्दन, रामानुज, वल्लभाचार्य, कबीर, रैदास, मीरा, नानक, तुलसीदास, रामदास, रामकृष्ण परमहंस, तिलक महाराज और महात्मा गांधी की बात क्यों नहीं की जाती? समकालीन समस्याओं का भारतीय समाधान खोजने की युगानुकूल कोशीश क्यों नहीं की जाती?

 

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