Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

पाठशाला (2010) - मिलिन्द उके

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पाठशाला (2010) - मिलिन्द उके

 

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अब केवल जेहादी इस्लाम अमेरिका से गुरिल्ला युध्द लड़ रहा है। हटिंगटन इसे सभ्यताओं का संघर्ष कहते थे। दरअसल यह दो तरह की बर्बरता का संघर्ष है। जेहादी इस्लाम और माओवाद के गंठजोड़ से राक्षसी आधुनिकता हारने वाली नहीं है। राक्षसी आधुनिकता से लड़ने के लिए एक नये प्रकार की सभ्यतामूलक विमर्श चाहिए जिसमें पैगम्बर मुहम्मद का फेथ (धार्मिक विश्वास), कार्ल मार्क्स का एनालिसिस (पूंजीवादी व्यवस्था का वस्तु परक विश्लेषण) और महात्मा गांधी की स्ट्रेटजी (सत्याग्रह की रणनीति) का संश्लेषण करना होगा। इसके लिए एक नयी पाठशाला चाहिए। नए पाठक्रम चाहिए। नयी पाठ - पुस्तक चाहिए। 
आधुनिक संस्कृति एक राक्षसी संस्कृति है चूंकि यह भोगवाद पर टिकी हुई है। यह अपने अंतिम अर्थों में नास्तिक संस्कृति भी है। इसमें कमजोर एवं लाचार लोगों को स्वेच्छा से जीने का अधिकार नहीं है। इसमें राज्य नामक संस्था एवं बाजार नामक व्यवस्था संप्रभु एवं निरंकुश हो जाती है। इसमें धर्म की सामाजिक भूमिक समाप्त हो जाती है। इसमें सत्य का स्थान तर्क ने ले लिया है। भारत में आधुनिकता का उपयोग हमें गुलाम बनाने के लिए किया गया जबकि पश्चिम में यह मुक्ति का माध्यम बना। फ्रांसीसी क्रांति का महत्व दो कारणों से है। 1 - फ्रांस एक कैथोलिक देश है। इसके बावजूद इसमें चर्च की सत्ता से स्वतंत्र राजनीतिक क्रांति एवं बौध्दिक विमर्श को संभव बनाया 2 - नेपोलियन के सैनिक अभियानों के साथ - साथ फ्रांसीसी क्रांति के विचारों का प्रचार - प्रसार हुआ। वर्ना राजनीतिक क्रांति अमेरिका में पहले हो चुकी थी। जर्मनी, ईंग्लैंड एवं अमेरिका प्रोटेस्टैंट देश हैं। आधुनिकता के केन्द्र में उपरोक्त चारो देश रहे हैं।
हिन्दुओं में 5 हजार से ज्यादा जातियां एवं जनजातियां हैं। जबकि ईसाईयों में 400 से ज्यादा सेक्ट्स, कल्ट्स एवं डिनोमिनेसंस हैं। सैध्दांतिक आधार पर इसलाम एक बंद धर्म माना जाता है। लेकिन व्यवहार में इसमें भी विविधताएं हैं। खासकर भारतीय मुसलमान अरबी अर्थों में मुसलमान हैं ही नहीं। वे सूफी संतों के मजार एवं दरगाह में जाकर सिर नवाते हैं। वे संगीत एवं नृत्य को भी इबादत का माध्यम मानते हैं। यदि 1947 में देश का हिंसक बंटवारा नहीं हुआ होता तो आज हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इतनी असहिष्णुता एवं संवादहीनता नहीं होती। भारत में इस्लाम भी पारंपरिक धर्म है।
आधुनिकता इस्लाम को भी धीरे - धीरे बदल रही है। सलमान रूसदी, तसलीमा नसरीन, साहिर लुधियानवी जैसे मुसलमानों की संख्या धीरे - धीरे बढ़ रही है। रहीम, रसखान और दारा शिकोह जैसे मुसलमान मध्यकाल में भी हुए थे। उपभोक्तावाद का आकर्षण उनमें भी है। गांधी का प्रभाव मुसलमानों में उतना ज्यादा नहीं था। अत: बंटवारा के समय वे हिन्दुओं को बचाने की स्थिति में नहीं थे। उनका प्रभाव हिन्दुओं पर ज्यादा था अत: उन्होंने दंगा के दौरान मुसलमानों को बचाया। ज्यादातर मुसलमानों को नहीं पता है कि हिन्द स्वराज में गांधी ने पैगम्बर मुहम्मद को कोट (उध्दरित) किया है।
परम्परा को भौतिक एवं तकनीकि स्तर पर जीवंत समाज का आधार बनाना अब संभव नहीं है। इसे अब सांस्कृतिक आधार पर ही बचाया जा सकता है। अच्छा हो या बुरा आधुनिक तकनीक एवं राजनीतिक - अर्थशास्त्र आज हमारी भौतिक संस्कृति का आधार है। अभौतिक संस्कृति को बदलने में पैगम्बर मुहम्मद का फेथ, कार्ल मार्क्स का एनालिसिस एवं महात्मा गांधी की स्ट्रेटजी से काफी मदद मिल सकती है। भारत एक बहु - धार्मिक एवं बहु - सांस्कृतिक देश है। यह उत्तर - आधुनिक, उत्तर - औपनिवेशिक देश भी है। इस की राजनीतिक संस्कृति में इकहरी विचारधारा की जगह बहुआयामी विचारधारा ज्यादा प्रासंगिक है।

उत्तर आधुनिकता को समझने के लिए नीत्से को समझना आवश्यक है। नीत्से उत्तर- आधुनिकता की गंगोत्री हैं। नीत्से सुकरात से पहले के यूनानी विमर्श से जुड़े हुए हैं। हीडेगर नीत्से से प्रभावित होने के बावजूद एक ईसाई हैं। शुरूआती दौर में ईसाई लोग रोमण साम्राज्य में रह रहे थे।

 

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