Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

पैगम्बर मुहम्मद, कार्ल मार्क्स एवं महात्मा गांधी

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पैगम्बर मुहम्मद, कार्ल मार्क्स एवं महात्मा गांधी

 

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भारतीय सभ्यता पारम्परिक सभ्यता और सनातन धर्म का एक रूप है। इसमें श्रम की अवधारणा होमो फाबर की मार्क्सवादी अवधारणा से अलग है। मनुष्य केवल टूल मेकिंग एनिमल या इन्सट्रुमेंटल लेबरर नहीं है। भारतीय सभ्यता में आर्ट और क्राफ्ट में अन्तर नहीं है। हर प्रकार के श्रम का एक ही उद्देश्य है आत्म साक्षात्कार या ब्रहृम साक्षात्कार। लोक और शास्त्र एक दूसरे के पूरक हैं और इनके बीच में लगातार लेन -देन चलते रहता है। अरस्तु से लेकर नित्से तक ट्रेजड़ी पश्चिम में कला का उत्स रहा है। लेकिन भारत में कला के नौ प्रकार के रसात्मक उत्स हैं। फिर भी भरतमुनि से कालीदास तक भारत में श्रृंगार को रसराज कहा गया है। भारत के लोक संगीत या लोकगीत को आप समाजशास्त्रीय अर्थों में फोक संगीत या लिटिल ट्रैडिशन  नहीं कह सकते। इसे देशी और मार्गी की शब्दावली में ही समझ सकते हैं। भारत में शास्त्रीय मार्गी है, वह क्लासिकल या ग्रेट नहीं है। लोक सनातन होता है शास्त्र काल - सापेक्ष होता है। देशी की तुलना में मार्गी में ज्यादा बदलाव देखने को मिलता है। देशी को लोग अनौपचारिक रूप से श्रम करने या सामाजिक संस्कार करने के दौरान अभ्यास से अनायास सीखते हैं जबकि मार्गी को गुरू - शिष्य परम्परा में सीखना पड़ता है। इसमें एक औपचारिक प्रशिक्षण लिया - दिया जाता है। गांधी के हिन्द स्वराज में लोक पक्ष प्रमुख है। पार्सन्स जैसे लोग आधुनिक को ग्रेट ट्रैडिशन या क्लासिकल ट्रैडिशन समझते हैं। उनकी नजर में पारम्परिक चीजें फोक या लिटिल ट्रैडिशन हैं। यह दृष्टिकोण तुलनात्मक अध्ययन के लिए विवेक सम्मत नहीं है। गांधी के लिए आधुनिकता मूलत: असत्य एवं हिंसा पर आधारित मानववादी उपभोक्तावाद है जबकि विवेकानंद के लिए आधुनिकता मूलत: विज्ञान एवं तकनीक की एक परम जिज्ञासु दृष्टि है। गांधी हिन्दू परम्परा के वामपंक्ष के प्रतिनिधि हैं जबकि विवेकानंद हिन्दू परम्परा के दक्षिण पक्ष के प्रतिनिधि हैं। गांधी भारतीय परम्परा और पश्चिमी परम्परा में सहधर्मिता देखते हैं। विवेकानंद आधुनिक भारतीय अध्यात्म (वेदांत) और पश्चिमी आधुनिकता के बीच पूरकता देखते हैं। समाज विज्ञानियों की तुलना में गांधी और विवेकानंद का भारत विमर्श या आधुनिकता के बारे में विमर्श ज्यादा गंभीर है। गांधी भारतीय लोक के प्रतिनिधि थे। वैष्णव संत मूलत: लोक के प्रतिनिधि हैं। शैवागम मूलत: शास्त्र है। तंत्र - योग शास्त्रीय परम्परा है। लोक में व्यक्तिगत निर्वाण लक्ष्य होता  है। शास्त्र में सामुहिक व्यवस्था लक्ष्य होता है। भारतीय संस्कृति की शास्त्रीय परम्परा सामुहिक निर्वाण की क्रमिक व्यवस्था रही है। हिन्दस्वराज में गांधी जी अभय की शिक्षा देते हैं। दरअसल भारतीय संस्कृति में सिध्द की पहचान है कि वह किसी से नहीं डरता। उसे किसी चीज से भय नहीं होता। वह अपनी सिध्दि में परम संतुष्ट रहता है। अपने स्व की अभिव्यक्ति उसका परम पुरूषार्थ होता है।


भारत को महाशक्ति बनने के लिए तीन चीज चाहिए -

आर्थिक सुदृढ़ता, तकनीकी क्षमता और नैतिक नेतृत्व। बिना नैतिक नेतृत्व के आप लंबे समय तक शीर्ष पर नहीं बने रह सकते। इसके लिए 20 करोड़ ग्रेजुएट और 50 करोड़ प्रशिक्षित पेशेवरों का हुजूम खड़ा करना आवश्यक है। विश्व की शीर्ष 100 कंपनियों में 30 भारत की हो सकती हैं। भारत दुनिया के 10 प्रतिशत व्यापार का केंद्र बन सकता है। वर्ष 1770 में दुनिया के कारोबार का 25 प्रतिशत हिस्सा भारत में था। हमें निजी क्षेत्रों को सीमित नहीं करना है, हमें उन्हें नियमित करना है। आज भारत में हर मिनट 30 लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर कूच करते हैं। इसके लिए हमें कम से कम 500 नए शहरों का निर्माण करना होगा। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए हमें कृत्रिम रूप से निर्मित की गई अभाव की स्थितियों (लाइसेंस - परमिट राज के अवशेष) को समाप्त करना होगा। हमें आंकडों. के आधार पर फैसले लेने होंगे, विचारधाराओं के आधार पर नहीं। हमें अपना ध्यान सिध्दांतों पर केंद्रित करना होगा, रीतियों पर नहीं। भारत को मानसिक गुलामी की आदतों से मुक्त होना होगा। हर जोखिम के बावजूद आधुनिकता का घोड़ा फिलहाल रूकने वाला नहीं है। खासकर इसका तकनीकी और आर्थिक - राजनीतिक पक्ष। गांधीवाद विवेकानन्द के वेदांत का ही विकल्प हो सकता है। पश्चिमी आधुनिक तकनीक एवं राजनीतिक - अर्थशास्त्र को एक हद तक स्वीकारना ही पड़ेगा। गांधीवाद या विवेकानन्दवाद आज संस्कृति के वैकल्पिक मॉडेल के रूप में उपलब्ध हैं। आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी का केवल नियमन किया जा सकता है। इसे सिरे से नकारने का विकल्प केवल संन्यासी, मुनि या भिक्षु चुन सकते हैं। समाज या समुदाय के स्तर पर अभौतिक संस्कृति ही चुनी जा सकती है। भौतिक संस्कृति को प्रकृति की तरह एक परिस्थिति  के रूप में स्वीकारना ही पड़ता है। परिस्थितियों को बदलने में पीढ़ियां खप जाती हैं। आधुनिक परिस्थिति को विकसित होने में करीब 500 वर्ष लगा है। भारत में आधुनिकता ब्रिटिश गुलामी के रूप में  हमारे समाज के लिए एक अभिशाप बनकर आई। जबकि पश्चिम के लिए आधुनिकता चर्च एवं सामंतवाद से मुक्ति के रूप में आई। पश्चिमी आधुनिकता के केन्द्र में जर्मनी का धर्मसुधार आंदोलन, ईंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति, अमेरिका की राजनीतिक क्रांति और फ़्रांस का बौद्धिक एवं सांस्कृतिक आंदोलन (एनलाइटेनमेंट) रहा है। आज संयुक्त राज्य अमेरिका एक ईसाई राज्य (स्टेट) है। यह बाईबिल के धर्म पर आधारित नहीं है। यह रोमन साम्राज्य की अवधारना पर आधारित है। काल्विन की थियोलॉजी इसकी घोषित विचार-धारा है लेकिन इसकी मूल प्रवृत्ति का आधार एडम स्मिथ का राजनीतिक अर्थशास्त्र है। अमेरिकी सामा्रज्य ने ब्रिटिश उपनिवेशवाद को नये स्वरूप प्रदान किया है। मार्क्सवाद का आधार, यहुदि धर्म के सांस्कृतिक विमर्श से इस्लाम का भी जन्म हुआ है। काल्विन और एडम स्मिथ से यहुदि धर्म और इस्लाम दोनों की असहमतियां हैं। यहुदि धर्म और इस्लाम धर्म के आपसी अंतर्विरोध भी हैं। इसके बावजूद मध्य ऐशिया में अरब और इजरायल का समकालीन संघर्ष द्वितीय विश्वयुद्भ के ईसाई देशों की नीतियों का कुफल है। इसका थियोलॉजिकल आधार नहीं है। दूसरी ओर अमेरिका और इजरायल की दोस्ती का आघार भी राजनीतिक है, थियोलॉजिकल नहीं है। इस परिस्थिति में भारत के हिन्दुओं के सामने महात्मा गांधी की रणनीति सबसे उत्तम मार्ग है। यदि अमेरिका और जेहादी इस्लाम तथा माओवादी के बर्बर संघर्ष के बीच हम वैकल्पिक सभ्यता का शांति पूर्वक विमर्श चला सकें तो इसमें समूचे विश्व का कल्याण होगा। जेहादी इस्लाम और माओवादी विचारधारा आधुनिक उपनिवेशवाद की समस्या का समाधान नहीं है।

 

 

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