Dr Amit Kumar Sharma

लेखक -डा० अमित कुमार शर्मा
समाजशास्त्र विभाग, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली - 110067

कुजात गांधीवादी लोहिया

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कुजात गांधीवादी लोहिया

 

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 महात्मा गांधी के प्रमुख शिष्यों में विनोबा, जवाहरलाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल, राजगोपाला चारी और खान अब्दुल गफ्फार खां की चर्चा की जाती है। लोहिया खुद को कुजात गांधीवादी कहते थे। मेरी दृष्टि में महात्मागांधी की मूल चेतना को सामाजिक क्षेत्र में विनोबा और राजनीतिक क्षेत्र में लोहिया ने आगे बढ़ाया है। एक अर्थ में विनोबा और लोहिया दोनों एक - दूसरे के पूरक थे। दोनों को मिलाकर ही गांधी के सभ्यतामूलक विमर्श को समकालीन संदर्भ में समझा जा सकता है। लोहिया की राजनीति का एक सांस्कृतिक संदर्भ था जो नेहरू की गैर - गांधीवादी नीतियों के विरोध में उपजा था। जवाहरलाल नेहरू आधुनिक पश्चिमी सभ्यता के हिमायती थे। वे गांधी से भावनात्मक रूप से अवश्य जुड़े थे लेकिन वैचारिक रूप से वे गांधी जी के प्रमुख प्रतिद्वंदी थे। दूसरी ओर, लोहिया गांधी जी की वैचारिक परंपरा को राजनीति में सींचने वाले माली थे।      गांधी जी की तरह लोहिया भी राजनीति और धर्म के बीच घनिष्ठ संबंध को स्वीकार कर राजनीति के नैतिक आधार को मजबूत करने में लगे रहे। लोहिया ने साफ शब्दों में कहा कि धर्म दीर्घकालीन राजनीति है और राजनीति अल्पकालीन धर्म। धर्म श्रेयस् की उपलब्धि का प्रयत्न करता है, राजनीति बुराई से लड़ती है। धर्म और राजनीति के दायरे अलग रखना ही अच्छा है, लेकिन यह समझते हुए कि दोनों की जड़ें एक हैं। एक ही वस्तु के दो स्वरूपों, एक अल्पकाल और दूसरा दीर्घकाल के भेद का एक नतीजा अवश्य होता है। लम्बान में काल शान्त है। अल्प में काल रूद्र है। दोनों का तात्पर्य एक है। धर्म और राजनीति के अविवेकी मिलन से दोनों भ्रष्ट होते हैं। राजनीति के दण्ड और धर्म की व्यवस्थाओं को अलग रखना चाहिए। परन्तु धर्म और राजनीति एक - दूसरे से सम्पर्क न तोड़ें, मर्यादा निभाते हुए।
लोहिया ने यह भी कहा कि पवित्र नदियां साफ करो, तीर्थ स्थानों को साफ करो, कैलाश - मानसरोवर को या तो स्वतंत्र तिब्बत की रखवाली में रखो या हिन्दुस्तान को दो, कैलाश - मानसरोवर पर चीन का कोई हक नहीं बनता। वे यह भी कहते हैं कि गांधी जी ने भी धर्म को या ईश्वर को या सत्य को  दरिद्रनारायण में देखा था और विशेष करके  दरिद्रनारायण की रोटी में।

लोहिया ने यह भी कहा कि उपनिषद वेदों का एक निचोड़ है, पूरा निचोड़ नहीं। उपनिषद में दर्शन को आप संगीत के रूप में पाएंगे। सारी दुनिया में दर्शन गद्य में है। केवल हिन्दुस्तान में दर्शन संगीत के रूप में कहा गया। जब दर्शन और संगीत का जोड़ हो जाए तो मजा ही आएगा। इन श्लोकों को अगर मन में गुनगुनाओ या जोर से भी सुनो तो मजा तो मिलता ही है और फिर ब्रहम ज्ञान का वह स्वरूप आपके मन के सामने आता है जिसमें आदमी अपनी सीमित करने वाली चमड़ी के कुछ बाहर निकल कर बाकी सबसे अपनापन अनुभव करने लगता है। चमड़ी हमारी सीमा है। जैसे देश की सीमा होती है वैसे हमारी सीमा चमड़ी है। इसी के अन्दर हम हैं। जब आदमी अपने संकुचित शरीर और मन से हट कर सब लोगों से अपनापन महसूस करे, यही असली ब्रहम ज्ञान है।

 

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